प्रस्ताव – नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 – भारत का नैतिक व संवैधानिक दायित्व
संघ का अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, पड़ोसी इस्लामिक देशों पाकिस्तान, बाँग्लादेश एवं अफगानिस्तान में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने की प्रक्रिया की जटिलताओं को समाप्त कर सरल बनाने हेतु, नागरिकता संशोधन अधिनियम – 2019 पारित करने पर भारतीय संसद तथा केंद्र सरकार का हार्दिक अभिनंदन करता है।
1947 में भारत का विभाजन पांथिक आधार पर हुआ था। दोनों देशों ने अपने यहाँ पर रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा, पूर्ण सम्मान तथा समान अवसर का आश्वासन दिया था। भारत की सरकार एवं समाज दोनों ने अल्पसंख्यकों के हितों की पूर्ण रक्षा की तथा सरकार ने उसके भौगोलिक क्षेत्र में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एवं विकास के लिए संवैधानिक प्रतिबद्धता सहित विशिष्ट नीतियाँ भी बनाईं। दूसरी ओर, भारत से अलग होकर निर्मित हुए देश नेहरु-लियाकत समझौते और समय-समय पर नेताओं के आश्वासनों के बावजूद ऐसा वातावरण नहीं दे सके। इन देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों का पांथिक उत्पीड़न, उनकी संपत्तियों पर बलपूर्वक कब्जा तथा महिलाओं पर अत्याचार की निरंतर घटनाओं ने उन्हें नए प्रकार की गुलामी की ओर धकेल दिया। वहाँ की सरकारों ने भी अन्यायपूर्ण कानून एवं भेदभावपूर्ण नीतियाँ बनाकर इन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को बढ़ावा ही दिया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में इन देशों के अल्पसंख्यक भारत में पलायन को बाध्य हुए। इन देशों में विभाजन के बाद अल्पसंख्यकों के जनसंख्या प्रतिशत में तीव्र गिरावट का तथ्य उसका स्वयंसिद्ध प्रमाण है।
यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि भारत की संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन तथा स्वाधीनता के संघर्ष में इन क्षेत्रों में रहने वाले परंपरागत भारतीय समाज का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इस कारण भारतीय समाज एवं भारत सरकार का यह नैतिक तथा संवैधानिक दायित्व बनता है कि वे इन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करें। पिछले 70 वर्षों में इन बंधुओं के लिए ससंद में अनेक बार चर्चा हुई तथा विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर अनेक प्रावधान भी किए गए। परंतु प्रक्रिया की जटिलताओं के चलते बड़ी संख्या में लोग आज भी नागरिकता के अधिकार से वंचित रहकर अनिश्चितता एवं भय के वातावरण में जी रहे हैं। वर्तमान संशोधन के परिणामस्वरूप ये लोग सम्मानपूर्ण जीवन जी सकेंगे।
सरकार द्वारा संसद में चर्चा के दौरान तथा बाद में समय-समय पर यह स्पष्ट किया गया है कि इस कानून द्वारा भारत का कोई भी नागरिक प्रभावित नहीं होगा। कार्यकारी मंडल सन्तोष व्यक्त करता है कि इस अधिनियम को पारित करते समय उत्तर-पूर्व क्षेत्र के निवासियों की आशंकाओं को दूर करने के लिए आवश्यक प्रावधान भी किये गए हैं। यह संशोधन इन तीन देशों में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए इन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को नागरिकता देने के लिए है तथा किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता वापस लेने के लिए नहीं है। परंतु, जिहादी–वामपंथी गठजोड़, कुछ विदेशी शक्तियों तथा सांप्रदायिक राजनीति करनेवाले स्वार्थी राजनैतिक दलों के समर्थन से, समाज के एक वर्ग में काल्पनिक भय एवं भ्रम का वातावरण उत्पन्न करके देश में हिंसा तथा अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास कर रहा है।
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन कृत्यों की कठोर शब्दों में निंदा करता है तथा संबंधित सरकारों से यह माँग करता है कि देश के सामाजिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय एकात्मता को खंडित करने वाले तत्वों की समुचित जाँच कराकर उपयुक्त कार्रवाई करें।
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल समाज के सभी वर्गों, विशेषकर जागरूक एवं जिम्मेदार नेतृत्व का आवाहन करता है कि इस विषय को तथ्यों के प्रकाश में समझें एवं समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने और राष्ट्रविरोधी षड्यंत्रों को विफल करने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।