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छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण के 350वें वर्ष के उपलक्ष्य में मा. सरकार्यवाह जी का वक्तव्य

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा
सेवा साधना एवं ग्राम विकास केंद्र, पट्टीकल्याणा – पानीपत (हरियाणा)
चैत्र कृष्ण 5-7 युगाब्द 5124 (12-14 मार्च 2023)
छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण के 350वें वर्ष के उपलक्ष्य में मा. सरकार्यवाह जी का वक्तव्य

छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के उन महान व्यक्तित्वों में एक हैं, जिन्होंने समाज को सैकड़ों वर्षों की दासता की मानसिकता से मुक्त कर समाज में आत्मविश्वास व आत्मगौरव का भाव जगाया। ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को उनका राज्याभिषेक हुआ तथा हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना हुई। इस वर्ष हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350वाँ वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। महाराष्ट्र सहित देशभर में इस निमित्त अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। रा. स्व. संघ इस पावन अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज का पुण्यस्मरण करते हुए स्वयंसेवक तथा सभी समाज घटकों का आहवान करता है कि ऐसे सभी आयोजनों में भाग लेकर हिन्दवी स्वराज की स्थापना जैसी युगप्रवर्तक घटना का पुनःस्मरण करें।

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अद्वितीय पराक्रम, रणनीतिक कुशलता, युद्धशास्त्र की मर्मज्ञता, संवेदनशील, न्यायपूर्ण व पक्षपातरहित प्रशासन, नारी का सम्मान प्रखर हिंदुत्व जैसी कई विशेषताओं से परिपूर्ण रहा। विपरीत परिस्थिति का सामना करते समय भी अपने ध्येय तथा ईश्वर पर श्रद्धा व विश्वास, माता पिता एवं गुरु जनों का सम्मान, अपने साथियों के सुख-दुःख में साथ निभाने, समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के कई उदाहरण उनके जीवन में पाए जाते हैं। बाल्यकाल से ही अपने व्यक्तित्व से उन्होंने अपने साथियों में स्वराज्य स्थापना हेतु प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा जगाई, जो आगे चलकर भारत के अन्यान्य प्रदेशों के देशभक्तों के लिए भी प्रेरणादायक रही। उनके शरीर के शांत होने के पश्चात् भी सामान्य समाज ने दशकों तक एक सर्वंकष आक्रमण का यशस्वी प्रतिकार किया, जो इतिहास में अनोखा उदहारण है।

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बाल्यकाल में लिये गए स्वराज्य स्थापना के संकल्प का उद्देश्य मात्र सत्ता प्राप्ति नहीं अपितु, धर्म एवं संस्कृति के रक्षा हेतु ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना करना था। अतः उन्होंने उसका अधिष्ठान ‘यह राज्य स्थापना श्री की इच्छा है’ इस भाव से जोड़ा था। स्वराज्य स्थापना के समय अष्टप्रधान मंडल की रचना, ‘राज्यव्यवहार कोष’ का निर्माण और स्वभाषा का उपयोग, कालगणना हेतु शिव-शक का प्रारम्भ, संस्कृत राजमुद्रा का उपयोग, आदि कार्यकलाप ‘धर्मस्थापना’ के उद्देश्य से स्थापित ‘स्वराज्य’ को स्थायित्व देने की दिशा में ही रहे।

आज भारत अपनी समाजशक्ति को जागृत करते हुए अपने ‘स्व’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण के पथ पर आगे बढ़ रहा है, भारत के ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना के उद्देश्य से चली छत्रपति शिवजी महाराज की जीवनयात्रा का स्मरण अत्यंत प्रासंगिक एवं प्रेरणास्पद है।