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भाग्यनगर ऐसे बना हैदराबाद

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–प्रदक्षिणा

वास्तव में देखा जाए तो विभिन्न निजाम और 1948 के बाद कांग्रेसी सरकारों द्वारा इतिहास से इस शहर का हिंदू नाम मिटाने के सभी प्रयासों के बावजूद इसका ‘भाग्यनगर’ नाम मिटाया नहीं जा सका है। यह हमेशा लोगों की याद में बना रहा। पुराने हैदराबाद राज्य में वर्तमान तेलंगाना, आज के कर्नाटक के तीन जिले और वर्तमान महाराष्ट्र के पांच जिले शामिल थे और इसके कई कस्बों के नाम मुस्लिम नामों में बदले गए थे। फिर भी, उन कस्बों के लोग उन्हें उनके पुराने नामों से पुकारते रहे, जो उनकी सच्ची विरासत है। भारतीय इतिहास की बहुत-सी दूसरी बातों की ही तरह, यहां भी मौखिक परंपराएं प्रबल थीं। उदाहरण के लिए, इंदूर शहर, जिसे निजामाबाद नाम दिया गया था, को इंदुर के रूप में संदर्भित किया जाता है; और पलामूर को भी निजामशाही के दौरान दिए गए आधिकारिक नाम महबूबनगर के बजाय उसी नाम से पुकारा जाना जारी है।

कई इतिहासकारों ने दशकों से भागमती/भाग्यमती के नाम पर बने शहर भाग्यनगर की सजीव स्मृति को भुलाने की कोशिश की है, लेकिन जनश्रुति में यह ज्यों का त्यों बना हुआ है। कई शोधकर्ताओं ने पुराने ऐतिहासिक अभिलेखों से पर्याप्त और निर्णायक सबूत निकाले हैं, जिनसे यह विवाद समाप्त हो जाना चाहिए। और, न केवल हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करना चाहिए, बल्कि दक्षिण में मुस्लिम आक्रमण से बहुत पहले संपन्न शहरों में रहे पुराने हैदराबाद राज्य के अन्य सभी शहरों का भी नाम परिवर्तन करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। आइए, शोधकर्ताओं और इतिहासकारों द्वारा खोजे गए कुछ सबूतों को देखें।

भाग्यनगर के संवित केंद्र के डॉ. राहुल ए. शास्त्री ने आधुनिक शहर की स्थापना पर एक आधिकारिक शोधपत्र में लिखा है, ‘‘भागमती एक शाही दरबार से जुड़ी महिला थी, जबकि सामने आए अन्य सबूतों से पता चलता है कि उसकी शादी कुली कुतुब शाह से हुई थी और इसलिए वह रानी थी। उसकी वास्तविक स्थिति जो भी रही हो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भागमती और राजधानी भाग्यनगर हमेशा एक वास्तविकता थे।’’

हैदराबाद की स्थापना 1591-92 ईस्वीं में चारमीनार के निर्माण के साथ मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने की थी। उसके पिता इब्राहिम कुली कुतुब शाह ने विजयनगर में सात साल (1543-50 ई.) निर्वासन में बिताए थे, जबकि उसका भाई गोलकुंडा का शासक था। कहा जाता है कि विजयनगर में उसका विवाह एक राजकुमारी भागीरथी से हुआ था। अपने निर्वासन के दौरान, इब्राहिम कुली को तेलुगू भाषा से प्रेम हो गया और उसने अपने दरबार में कई तेलुगू विद्वानों जैसे-अद्दनकी गंगाधर, कोंडुकुरु रुद्र और पोन्नगंती तेलंगाना— को आमंत्रित किया। अद्दनकी का कहना है, उसके दरबार में वेदों, पुराणों और संज्ञानात्मक विज्ञान में निपुण पुरुषों का आना-जाना लगा रहता था (शेरवानी 1968-75)। उसने हिंदुओं और तेलुगू लोगों को उच्च श्रेणी के पद दिए थे। ये विद्वान शाह पर अपना स्नेह लुटाते थे और उसे ‘मलकीभरामा’ और ‘अभिराम’ कहते थे। वे लोग तब भी शाह के साथ रहे जब वह भी अन्य सुल्तानों के साथ विजयनगर को नष्ट करने के अभियान में शामिल हुआ था। कुतुब शाहियों ने खास तौर पर तेलुगू भाषी क्षेत्रों को अपने राज्य में मिलाने का प्रयास किया था। इन्हीं परिस्थितियों के बीच मोहम्मद कुली कुतुब शाह का जन्म हुआ था। उसके पिता ने 1578 ई. में मुसी नदी पर एक पुल (पुराना पुल) बनवाया था। इस पुल से परे, ‘मुख्यत: ब्राह्मण’ बस्ती चिचलाम है, जहां शाह चिराग नाम के सूफी ने डेरा डाला था। (शेरवानी 1967-74)। इस ब्राह्मण बस्ती के पास या आस-पास अन्य सामाजिक समूह और काफी आर्थिक गतिविधियां रही होंगी, क्योंकि शेरवानी का तर्क है कि मोहम्मद कुली को ‘क्षेत्र की बढ़ती आबादी के बारे में जरूर बताया गया होगा।’ (वही)।

भाग्यनगर का साक्ष्य
जिस जगह पर चारमीनार बनाई गयी थी और हैदराबाद की स्थापना की गई थी, वहां की आबादी पहले से ही बढ़ रही थी, कई सामाजिक समूहों की उपस्थिति थी और काफी आर्थिक गतिविधि थी। शहर का कालक्रमानुगत नाम फारसी में ‘फरखुंदा बुनियाद’ रखा गया था जिसका अर्थ है तेलुगू और संस्कृत का शब्द ‘भाग्य’ (लूथर 2016)। स्थानीय लोकश्रुतियों के अनुसार मोहम्मद कुली को भाग्यमती नाम की देवदासी से प्रेम हो गया था जो भाग्यलक्ष्मी मंदिर में देवदासी थी। उस पर मुग्ध होकर उसने नए शहर का नाम भाग्यनगर रखा। उसी काल में 1594 ई. के आसपास फैजी द्वारा सम्राट अकबर को लिखे गए एक पत्र में भी जनश्रुतियों को प्रतिध्वनित किया गया था, जिसमें कहा गया था, ‘‘अहमद कुली (एसआईसी) शिया मजहब में डूबा हुआ है, और उसने अपनी पुरानी प्रेमिका (माशूका-ए-कदीमी) देवदासी (फाहिशा-ए-कुह्ना) भागमती के नाम पर एक शहर भागनगर बनाया है।’’(शेरवानी)। सन् 1610 में फरिश्ता ने अपनी पुस्तक ‘दकन का इतिहास’ में मोहम्मद कुली के बारे में लिखा है, ‘‘अपने पिता की मृत्यु पर यह राजकुमार 12वें साल में गोलकुंडा पर शासनारूढ़ हुआ … गोलकुंडा की आबोहवा उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं थी, सो उसने लगभग आठ मील की दूरी पर एक शहर बसाया, जिसे उसने अपनी प्रेमिका और दरबार की मशहूर नर्तकी भाउग के नाम पर भाउगनगर नाम दिया था; लेकिन बाद में अपनी दीवानगी पर शर्मिंदा होकर उसने इसका नाम हैदराबाद कर दिया था।’’(स्कॉट 1784: 409)।

संभवत: 1614 में लिखी गई पुस्तक ‘रिलेशंस आॅफ गोलकुंडा’ में हैदराबाद की स्थापना के दो दशक बाद गोलकुंडा की एक अजीब परम्परा का वर्णन है। इसमें कहा गया है, ‘‘हर साल अप्रैल के महीने में पूरे राज्य की देवदासियों को बागनगढ़ की यात्रा करनी होती है, जहां उन्हें पहले मुस्लिम राजा की मृत्यु के उपलक्ष्य में नृत्य के लिए बुलाया जाता है। यह बात मुझे बहुत अजीब लगती है।’’(लूथर 2016 में)। किसी मुस्लिम शासक के अधीन प्रचलित यह प्रथा केवल तभी समझ में आती है जब हैदराबाद का नामकरण मूल रूप से देवदासी भाग्यलक्ष्मी के नाम पर किया गया हो। भाग्यनगर नाम खत्म करके इसे हैदराबाद नाम देने का एक कारण यह भी हो सकता है कि भाग्यमती ने सुल्तान के साथ अपने संबंध के बावजूद कन्वर्जन नहीं किया था। अगर उसने कन्वर्जन करके हैदर या कोई और नाम रख लिया होता, तो उसके नाम पर शहर का नामकरण करने में कोई शर्म की बात नहीं होती। इस प्रकार ऐसा लगता है कि भाग्यमती अपने शाही प्रेमी के बावजूद मृत्युपर्यंत हिंदू रही। वास्तव में, कांस्टेबल ने बर्नियर को लिखे फुटनोटों में खफी खान को उद्धृत करते हुए लिखा है कि भाग्यमती की मृत्यु के बाद ही शहर का नाम बदलकर हैदराबाद रखा गया था। (बर्नियर 1916 : 19-2)।

1585 ई. में युवा मुहम्मद कुली को अधिक रूढ़िवादी मुसलमानों के समर्थन की आवश्यकता थी और उसने हाल ही में ईरान से आए मीर मुमीन आस्त्राबादी को पेशवा के रूप में नियुक्त किया था। संभवत: मीर मुमीन के अच्छे संपर्कों के चलते ही ईरान के शाह अब्बास ने 1603 ई. में दूतावास खोलने पर सहमति दे दी थी। लेकिन ईरानियों के ऐसे सुल्तान से प्रभावित होने की संभावना नहीं थी, जिसकी राजधानी का नाम किसी हिंदू देवदासी के नाम पर रखा गया हो। इसीलिए 1584 के बाद कुतुब शाहियों द्वारा जारी किया जाने वाला पहला सिक्का 1603 ई. में ‘दारउस्सल्तनत हैदराबाद’ से जारी किया गया था। इसी वर्ष यहां ईरानी दूतावास खुला था। भाग्यनगर आधिकारिक रूप से बिसरा दिया गया। लोकधारणा है कि मीर मुमीन ने भाग्यमती की कहानी को दबा दिया। भाग्यनगर नाम राजनीतिक रूप से सुविधाजनक नहीं था। सिक्कों, फरमानों और आधिकारिक संदेशों में उसे इस्तेमाल नहीं किया गया। लेकिन लोग शहर को भाग्यनगर कहते रहे। ‘भाग्यनगर’ नाम का कोई आधिकारिक खंडन भी नहीं किया गया था, क्योंकि इसकी वजह से लोगों के मन में इसके प्रति स्नेह कम हो सकता था और दूसरी बात कि शायद सुल्तान अपने पहले प्यार के प्रति वफादार था। शहर के पहले नाम फारसी के ‘फरखुंदा बनियाद’ से भी इस बात का पता लगता है। फारसी में फरखुंदा का अर्थ संस्कृत और तेलुगू में भाग्य है। ¹

राज्य अभिलेखागार में 1637 का एक विरासत दस्तावेज मिला है जिसे भागनगर के काजी जहीरुद्दीन ने जारी किया था (लूथर 2016)। 1672 में अब्बे कैरे ने इस शहर को बागनगर कहा था (वही)। इसके अलावा 1656-1668 के अपने यात्रा वृत्तांत में फ्रांस्वा बर्नियर ने मीर जुमला के एक पत्र का अनुवाद किया है जिसका उद्देश्य सुल्तान से विश्वासघात करके औरंगजेब से सम्पर्क करना था। उस पत्र में सुल्तान के निवास स्थान का उल्लेख करते हुए लिखा गया, ‘‘बागनगोर में, जहां तक उनके बागनगोर का महल है जहां वह आमतौर पर रहते हैं, के इर्द-गिर्द कोई दीवाल नहीं है, कोई खाई नहीं है और कोई किलेबंदी नहीं है।’’(बर्नियर 1916 : 19-20)। अंत में प्रामाणिक माना जाने वाला घोरपडे का पत्र है (क्रुत्जर 2008: 289), जिसमें ‘भागनगर’ को संदर्भित किया गया है, और जो शिवाजी तथा कुतुब शाहियों के बीच हुए समझौतों का उल्लेख करता है। इस पत्र का काल 1670 हो सकता है। थेवेनॉट ने 1665-66 ई. में लिखा था, ‘‘इस राज्य (गोलकुंडा) की राजधानी को बागनगर कहा जाता है; फारसी इसे ऐदर आबाद कहते हैं।’’
भाग्यनगर और भाग्यमती की कहानी आसिफ जही काल में पुनर्जीवित हुई। 1884 में सैयद हुसैन बिलग्रामी और विल्मोट ने कहा, ‘‘यह शहर राजा की हिंदू प्रेमिकाओं में से एक के नाम पर भागनगर कहा जाता था..और उसकी मृत्यु के बाद मुहम्मद कुली ने इसका नाम बदलकर हैदराबाद कर दिया था, फिर भी आज तक यहां के मूल निवासी, विशेष रूप से हिंदू, शहर को भागनगर कहते हैं।’’(लूथर 2016)। इसी तरह ग्रिबल (1896 : 209) भी इस बात की गवाही देते हैं कि हैदराबाद का पुराना नाम भागनगर था, जिसे सदी के अंत में मोहम्मद कुतुब शाह ने अपनी पसंदीदा पत्नी या प्रेमिका भागमती के नाम पर रखा था।

(लेखक सेंटर फॉर साउथ इंडियन स्टडीज में सीनियर एसोसिएट हैं)

Source: Panchjanya