प्रणवदा संघ मुख्यालय में
आजकल भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी जी की मीडिया और सोशल मीडिया में चर्चा हैं. वे चर्चा मेंलिए हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निमत्रण पर 7 जून को संघ मुख्यालय नागपुर जा रहे हैं. वहां वे संघ के तृतीय वर्ष के समापन समारोह के मुख्य अतिथि होंगे और स्वयंसेवकों को संबोधित करेंगे. इस समारोह में संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत मुख्य वक्ता होंगे. नागपुर में हर वर्ष 25 दिन का तृतीय वर्ष का वर्ग होता है जिसमें देश भर से कार्यकर्ता संघ कार्य का प्रशिक्षण लेने के लिए आते हैं. इस वर्ष भी यह वर्ग 14 मई को आरम्भ हुआ था और 7 जून को इसका समापन होगा. इसमें देश के सभी प्रान्तों से 709 स्वयंसेवक प्रशिक्षण ले रहे हैं.
जो लोग संघ को जानते और समझते हैं उनके लिए न तो यह आश्चर्यजनक घटना है और न ही नई बात है. उनके लिए यह सामान्य बात है. क्योंकि संघ अपने कार्यक्रमों में समाज सेवा में सक्रिय और प्रमुख लोगों को अतिथि के रूप में बुलाता रहा है. इस बार संघ ने डॉ. प्रणव मुखर्जी जी को निमंत्रण दिया और यह उनकी महानता है कि उन्होंने उसे स्वीकार किया.
1934 में तो पूज्य महात्मा गांधी जी स्वयं वर्धा में संघ के शिविर में आये थे. अगले दिन संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार उनसे भेंट करने उनकी कुटिया में गए थे और उनकी संघ पर विस्तृत चर्चा हुई थी. इसका उल्लेख गांधी जी ने 16 सितम्बर 1947 की सुबह दिल्ली में संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए किया है. उसमें उन्होंने संघ के अनुसाशन, सादगी और समरसता की प्रशंसा की थी. गांधी जी कहते हैं, ”बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था.’’ आगे वे कहते हैं, ”संघ एक सुसंगठित, अनुशासित संस्था है।” यह उल्लेख ‘सम्पूर्ण गांधी वांग्मय’ खण्ड 89, पृष्ठ सं. 215-217 में है.
संघ 1930 के दशक से ही समाज जीवन में सक्रिय लोगों को अपने कार्यक्रमों में बुलाता रहा है और ऐसे लोग समय-समय पर संघ के कार्यक्रमों में आये भी हैं. भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, बाबु जयप्रकाश नारायण भी संघ के आमंत्रण पर आये हैं और उन्होंने संघ की प्रशंसा की है. जनरल करियप्पा 1959 में मंगलोर की संघ शाखा के कार्यक्रम में आये थे। वहां उन्होंने कहा “संघ कार्य मुझे अपने ह्रदय से प्रिय कार्यों में से है। अगर कोई मुस्लिम इस्लाम की प्रशंसा कर सकता है, तो संघ के हिंदुत्व का अभिमान रखने में गलत क्या है? प्रिय युवा मित्रो, आप किसी भी गलत प्रचार से हतोत्साहित न होते हुए कार्य करो। डॉ. हेडगेवार ने आप के सामने एक स्वार्थरहित कार्य का पवित्र आदर्श रखा है। उसी पर आगे बढ़ो। भारत को आज आप जैसे सेवाभावी कार्यकर्ताओं की ही आवश्यकता है”।
1962 में भारत पर चीन के आक्रमण के समय संघ के स्वयंसेवकों की सेवा से प्रभावित होकर ही 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी ने संघ को आमंत्रित किया था और 3 हजार स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया था. संघ की ‘राष्ट्र प्रथम’ भावना के कारण ही 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी ने संघ के सरसंघचालक ‘श्री गुरूजी’ को सर्वदलीय बैठक में आमंत्रित किया था और वे गए भी थे.
1963 में स्वामी विवेकानंद जन्मशती के अवसर पर कन्याकुमारी में ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ निर्माण के समय भी संघ को सभी राजनैतिक दलों और समाज के सभी वर्गों का सहयोग मिला था. स्मारक निर्माण के समर्थन में विभिन्न राजनैतिक दलों के 300 सांसदों के हस्ताक्षर श्री एकनाथ रानडे जी ने प्राप्त किये थे.
1977 में आँध्रप्रदेश में आये चक्रवात के समय स्वयंसेवकों के सेवा कार्य देखकर वहां के सर्वोदयी नेता श्री प्रभाकर राव ने तो संघ को नया नाम ही दे दिया. उनके अनुसार, “R.S.S. means Ready for Selfless Sarvice.”
संघ भेदभावमुक्त, समतायुक्त समाज के निर्माण के लिए गत 92 वर्षों से कार्य कर रहा है. ऐसे समाज निर्माण में संघ को सफलता भी मिल रही है. इस विचार और कार्य से जो लोग सहमत हैं वे संघ के कार्यक्रमों में आते भी हैं और सहयोग भी करते हैं.
– नरेंद्र कुमार