सरसंघचालक जी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज हम हर काम आउटसोर्स करते हैं, ठेका निकालते हैं. जो काम हमें स्वयं करना चाहिए उसकी अपेक्षा हम ठेका देकर अन्य लोगों से करते हैं. घर के सामने कूड़ा उठाने के लिए लोगों को रखते हैं, जो अपना काम है उसके लिए व्यवस्था निर्माण करते हैं. उसी प्रकार देश का कार्य करने के लिए भी नेताओं को ठेका देते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उन्हें सभी काम करने चाहिए. यह व्यवस्था ठीक नहीं है.
उन्होंने कहा कि समाज के कारण ही राजा, राजा होता है. समाज ने जो कार्यभार सौंपा था वह उन्होंने नहीं किया तो समाज उसे पदच्युत कर देता है. जैसा समाज होता है, वैसा ही राजा होता है. यदि देश बड़ा होना है तो समाज बड़ा होना चाहिए. जिस देश का आम आदमी बड़ा, वह देश बड़ा.
उन्होंने कहा कि समाज में आचरण परिवर्तन हृदय परिवर्तन से ही होता है. आचरण का परिवर्तन पुलिस खड़ी रहे तब भी होता है, आचरण परिवर्तन ईडी का छापा ना पड़े इसलिए भी होता है, ऐसा नहीं होना चाहिए. परिवर्तन अंतर्मन से होना चाहिए और बुद्धि से समझकर होना चाहिए. वह करता है इसलिए नहीं, बल्कि स्व-विवेक से होना चाहिए.
आज पारिवारिक संबंधों के बंधन ढीले होने लगे हैं. हमारे यहां अत्यधिक भौतिकवाद और भोग-विलास जानबूझकर स्थापित किया गया है. इसलिए शिक्षित वर्ग में पारिवारिक संबंधों का टूटना अधिक दिखाई दे रहा है; उस प्रमाण में अशिक्षित वर्ग में यह देखने को नहीं मिलता. समाज में अपनापन बढ़ाना चाहिए. देश और राष्ट्र के लिए कितना समय देता हूं, इसका विचार करना चाहिए.
सरसंघचालक जी ने कहा कि सप्ताह में एक दिन पूरे परिवार को एक साथ बैठना चाहिए और अपनी वंशावली, रीति-रिवाज आदि के बारे में चर्चा करनी चाहिए. नई पीढ़ी के प्रश्नों का उचित उत्तर देकर समाधान करना चाहिए. पानी बचाना, प्लास्टिक हटाना, पेड़ लगाना, यह काम हर कोई अपने घर में कर सकता है. समरसता, नागरिक शिष्टाचार, बहुत आवश्यक है. स्वदेशी अर्थात केवल विदेशी वस्तुओं का उपयोग न करना ही नहीं, अपितु विनोबा भावे कहते हैं कि स्वदेशी का मतलब आत्मनिर्भरता और अहिंसा है. एक और चीज़ जो हम इसमें जोड़ते हैं, वह है सरलता.
लोकमान्य सेवा संघ के अध्यक्ष मुकुंदराव चितले ने प्रस्तावना रखी तथा कार्यक्रम का समापन ‘वंदे मातरम’ के साथ हुआ.